Raksha Bandhan 2023 : बन रहे हैं ये खास संयोग
हर साल रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इसलिए रक्षा बंधन को राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं. कुछ क्षेत्रों में इस पर्व को राखरी भी कहते. कई बार अंग्रेजी कैलेंडर के कारण सनातन पर्व की तिथियों में अक्सर उलटफेर देखने को मिलता है. ऐसा ही कुछ इस बार भाई-बहन के प्रेम के पर्व रक्षाबंधन पर भी देखने को मिल रहा है.
दरअसल, भद्रा के साये के कारण लोग असमंजस में है कि रक्षाबंधन का पर्व 30 अगस्त या 31 अगस्त को मनाया जाए. तो आइए वाराणसी के मंदाकिनी तट पर स्थापित काली मंदिर के देव ज्योतिषी महंतश्री अश्विनी पांडे जी से जानते हैं कि इस बार रक्षाबंधन कब मनाया जाएगा. साथ ही अलग-अलग धातु की राखियों के प्रभाव और अलग-अलग धातु की राखियों के प्रभाव और अलग-अलग राशियों को शुभता प्रदान करने वाली राखियो के रंगों के भी बारे में भी जानते हैं.

Raksha Bandhan 2022: राखी बांधने का शुभ मुहूर्त और सही तरीका
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त को रात 09 बजकर 01 मिनट के बाद से शुरू होगा और इस मुहूर्त का समापन 31 अगस्त को सूर्योदय काल में सुबह 07 बजकर 05 बजे पर होगा.
इन बातों का रखें ध्यान
भाई के लिए राखी शुभ हो इसके लिए उसमें कुछ तत्वों का होना आवश्यक है।
राखी में अगर ये तत्व नहीं हैं तो चाहे आप हीरे की ही राखी ही क्यों न खरीद लें, भाई के लिए वह रक्षासूत्र साबित नहीं हो सकती.रक्षासूत्र यानी राखी के कुछ मुख्य अवयय हैं।
राखी को सही अर्थों में रक्षासूत्र बनाने के लिए उसमें केसर, अक्षत, सरसों के दाने, दूर्वा और चंदन को रेशम के कपड़े में बांध लें या रेशम के धागे में पिरो अथवा चिपका लें.
क्या है भद्रा काल
मान्यता के अनुसार जब भी भद्रा का समय होता है तो उस दौरान राखी नहीं बांधी जा सकती।
भद्राकाल के समय राखी बांधना अशुभ माना जाता है.
शास्त्रों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है।
जिस तरह से शनि का स्वभाव क्रूर और क्रोधी है उसी प्रकार से भद्रा का भी है.
भद्रा के उग्र स्वभाव के कारण ब्रह्माजी ने इन्हें पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया।
पंचाग में इनका नाम विष्टी करण रखा गया है।
दिन विशेष पर भद्रा करण लगने से शुभ कार्यों को करना निषेध माना गया है.
एक अन्य मान्यता के अनुसार रावण की बहन ने भद्राकाल में ही अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधा था जिसके कारण ही रावण का सर्वनाश हुआ था.
इस बार रक्षाबंधन पर भद्राकाल नहीं रहेगा।
इसलिये बहनें भाइयों की कलाई पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच किसी भी समय पर राखी बांध सकती हैं.

इस बार ग्रहण और भद्रा से मुक्त रहेगा रक्षाबंधन
रक्षाबंधन का त्योहार हमेशा भद्रा और ग्रहण से मुक्त ही मनाया जाता है।
शास्त्रों में भद्रा रहित काल में ही राखी बांधने का प्रचलन है.
भद्रा रहित काल में राखी बांधने से सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है।
इस बार रक्षा बंधन पर भद्रा की नजर नहीं लगेगी.
इसके अलावा इस बार श्रावण पूर्णिमा भी ग्रहण से मुक्त रहेगी जिससे यह पर्व का संयोग शुभ और सौभाग्यशाली रहेगा.