आइये जानते है रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है और रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त क्या है
रक्षा बंधन भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध हिंदू त्यौहार है. यह उत्सव देश के अलग-अलग हिस्सों में उत्साह के साथ मनाया जाता है. रक्षाबंधन का पावन पर्व हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाएगा. भाई और बहनों दोनों को इस पर्व का इन्तजार बेसब्री से रहता है.
रक्षाबंधन केवल धागों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्यार, विश्वास और रिश्तों की गरिमा बनाने वाला पर्व है. रक्षाबंधन भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक होता है. यह त्योहार पूरे देश में धूम धाम से मनाया जाता है. बहन अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बाँधती और उसकी लंबी उमर की कामना करती हैं. भाई भी अपनी बहन की उम्र भर रक्षा करने का वचन देते है.
इस पर्व के पीछे देवराज इंद्र और इंद्रणी की कथा और देवी लक्ष्मी एवं असुर राजा बलि की कथा काफी प्रचलित है. इन्हीं कथाओं में रक्षा बंधन को भाई-बहनों का त्योहार मानाए जाने का रहस्य भी छुपा है.
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है
- रक्षाबंधन हर वर्ष अगस्त महीने में मनाया जाता है जिसमें बहन पूरे दिन भूखे रहकर अपने भाई के लिए व्रत रखती है और उससे अपने रक्षा करने का वचन लेती है.
- रक्षाबंधन दिन बहन सुबह उठ कर स्नान करके नए वस्त्र धारण करती हैं.
- फिर अपने भाई के लिए ख़रीदी गयी राखी खोल कर एक पूजा की थाली में रखती हैं इस थाली में इसके अलावा रोली, अक्षत, तिलक, कर्पूर, मिठाई आदि थाली भी रख कर खूब प्यार से राखी की थाली को सजाती हैं.
- इसके बाद अपने भाई को राखी बांध कर उसे हर मुसीबत से सुरक्षित रहने की प्रार्थना करती हैं, फिर अपने भाई को मिठाई खिलाकर बहन अपना व्रत पूरा करती है.
- राखी केवल एक धागा नहीं बल्कि एक बहन के विश्वास का प्रतीक हैं रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को पूरी जिंदगी रक्षा करने का वचन देता है और अपने बहन के लिए अपना प्यार दिखाने के लिए अपनी बहन को उपहार देता है.
रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त
- इस साल रक्षा बंधन 2020 में 3 अगस्त सोमवार के दिन मनाया जायेगा.
- रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त सुबह 09:27 से लेकर शाम के 09:11 बजे तक रहेगा.
रक्षाबंधन क्या है
रक्षा बंधन का पर्व दो शब्दों के मिलने से बना हुआ है, “रक्षा” और “बंधन“. संस्कृत भाषा के अनुसार, इस पर्व का मतलब होता है की “एक ऐसा बंधन जो की रक्षा प्रदान करता हो”. यहाँ पर “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है उधर “बंधन” का मतलब होता है एक गांठ, एक डोर जो की रक्षा प्रदान करे.
ये दोनों ही शब्द मिलकर एक भाई-बहन का प्रतिक होते हैं. यहाँ ये प्रतिक केवल खून के रिश्ते को ही नहीं समझाता बल्कि ये एक पवित्र रिश्ते को जताता है. यह त्यौहार खुशी प्रदान करने वाला होता है वहीँ ये भाइयों को ये याद दिलाता है की उन्हें अपने बहनों की हमेशा रक्षा करनी है.
“हालांकि यह प्रचलित है, लेकिन अधिकांश को यह बात शायद पता ना हो कि भाई को रक्षासूत्र बांधने से पहले बहनें तुलसी और नीम के वृक्ष को राखी बांधती हैं. ऐसा करके दरअसल, बहनें संपूर्ण प्रकृति की रक्षा का वचन लेती हैं.
राखी वास्तव में हर उस शख्स को बांधी जा सकती है, जो आपकी रक्षा का वादा करता है. चाहे वह पिता हो या भाई. दोस्त हो या ऑफिस में काम करने वाला कोई सहयोगी”.
रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है
इसके लिए बहुत सी कहानियाँ प्रचलित है.सबसे प्रचलित मान्यता है कि की राखी का त्योहार देवी देवताओं के समय से ही मनाया जा रहा है. माना जाता है की जब देवों और दानवों के बीच युद्ध हुआ और युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब तभी देवतागण भगवान इंद्र के पास गये और उनसे अपने प्राणो की रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे.
देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया. इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की.
राखी की कहानी इन्द्रदेव जी से संबंधित
- इन्द्रदेव जी महाराज जो कि हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले भगवान है एक बार क्या हुआ कि किसी वजह से उनका विवाद एक राक्षस से हुआ.
- राजा बलि नामक असुर राजा ने इन्द्रदेव को युद्ध में पराजय कर दिया था जिसकी वजह से इन्द्र्देव को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा.
- उस समय इन्द्रदेव की पत्नी सची ने त्रिदेवों में विष्णु जी के पास जाकर अपना दुख बताया.
- भगवान विष्णु जी ने सचि की बातों को सुन कर उसको एक सूट का धागा दिया उस धागे एक हाथ में पहने जाने वाला वयल बना कर दिया. इस वलय को भगवान विष्णु जी ने पवित्र और शक्ति शाली वलय कहा.
- सचि ने इस वलय को इन्द्र्देव के हाथ में बांध दिया और उनकी रक्षा की कामना की फिर क्या था भगवान की शक्ति के कारण राजा बलि और इन्द्रदेव में फिर से युद्ध हुआ और इन्द्रदेव की जीत हुई.
- इन्द्रदेव जी ने अपना अमरावती पर अधिकार कर लिया और इस घटना के बाद से पवित्र धागे का त्यौहार शुरू हो गया.
राखी की कहानी राजा बलि और धन की माता लक्ष्मी माता
कहते है की भागवत पुराण और विष्णु पुराण के अंतर्गत ये कहा जाता है माना जाता है कि भगवान विष्णु जी ने राजा बलि को हरा कर अपनी जीत हासिल कर ली थी. बलि की हार के बाद विष्णु जी ने तीनों लोकों को जीत लिया था.
विष्णु जी के जीतने के बाद बलि ने विष्णु जी से निवेदन किया की हे भगवान आप मेरे साथ मेरे महल में रहने की अनुमति दीजिये क्योंकि अब मेरे पास आपकी मित्रता के सिवा कुछ नहीं बच पाएगा.
माँ लक्ष्मी जी को विष्णु जी और बलि की ये मित्रता बिलकुल नहीं भा रही रही थी. माँ लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को वापस बैकुंठ धाम जाने के लिए बोला लेकिन विष्णु जी बलि को दिये हुए वचन में वचनबद्ध थे.
तब माँ लक्ष्मी जी ने बलि के हाथ में उसी वलय को बांधते हुए उन्हे भैया बोल कर कहा की भैया मुझे कुछ चाहिए क्या आप दे सकते है. बलि की आँखों से पानी आ गया की इतनी धनवान जिन्हें पूरा संसार धन वैभव की देवी कहता है उन्हे मुझसे क्या काम.
लेकिन बलि ने फिर भी कहा की बोलो बहन आपको क्या चाहिए. तभी माँ लक्ष्मी जी ने बलि से कहा की आप विष्णु जी को इस वचन से मुक्त कर दीजिये की वो आपके साथ रहेंगे. और उन्हें वापस जाने की अनुमति दीजिये. बलि जी ने माता की ये बात मान ली और उन्हें जाने दिया.
कृष्ण और द्रौपदी सम्बंधित कहानी
महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी ने कृष्ण की रक्षा के लिए उनके हाथ मे राखी बाँधी थी. इसी युद्ध के समय कुंती ने भी अपने पौत्र अभिमन्यु की कलाई पर सुरक्षा के लिए राखी बाँधी.