जन्माष्टमी, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और Krishna Janmashtami 2021 कथा
Krishna Janmashtami 2021 :दो दिन है जन्माष्टमी, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और Krishna Janmashtami कथा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2021: गृहस्थों की आज और साधु-संतों की कल होगी जन्माष्टमी 12 अगस्त को है कृष्ण जन्माष्टमी, जानिए- क्यों मनाया जाता है ये त्योहार,कृष्णा जन्माष्टमी पर दही हंडी को पकड़ने का महत्व
जन्माष्टमी कब है (Krishna Janmashtami 2021)?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी हर साल अगस्त या सितंबर महीने में आती है.
तिथि के हिसाब से जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जाएगी. वहीं, रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देने वाले लोग 11 अगस्त को जन्माष्टमी मना सकते हैं.
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त -Krishna Janmashtami 2021
दिन: सोमवार, भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि।
आज का दिशाशूल: पूर्व।
आज का राहुकाल: प्रात: 07:30 बजे से 09:00 बजे तक।
आज का पर्व एवं त्योहार: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती, श्री संत ज्ञानेश्वर जयंती।
विक्रम संवत 2078 शके 1943 दक्षिणायन, उत्तरगोल, वर्षा ऋतु भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी 26 घंटे तक, तत्पश्चात् नवमी कृतिका नक्षत्र 06 घंटे 39 मिनट तक, तत्पश्चात् रोहिणी नक्षत्र व्याघात योग 07 घंटे 46 मिनट तक, तत्पश्चात् हर्षण योग वृष में चंद्रमा।
आपने कई प्रसिद्ध हिंदी फिल्म गाने और फिल्मों में दहीहंडी की झलक देखी है। लेकिन क्या आपने कभी कृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी पर अभ्यास के पीछे महत्व का विह्वल किया है?
श्रीकृष्ण अवतार भगवान विष्णु का पूर्णावतार है. ये रूप जहां धर्म और न्याय का सूचक है वहीं इसमें अपार प्रेम भी है. श्रीकृष्ण अवतार से जुड़ी हर घटना और उनकी हर लीला निराली है.
श्रीकृष्ण के मोहक रूप का वर्णक कई धार्मिेक ग्रंथों में किया गया है.
सिर पर मुकुट, मुकुट में मोर पंख, पीतांबर, बांसुरी और वैजयंती की माला. ऐसे अद्भूत रूप को जो एकबार देख लेता था, वो उसी का दास बनकर रह जाता था.
5245 वर्ष पहले जन्माष्टमी के दिन भगवान मध्यरात्रि में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।
इसका गहरा महत्व भी है क्योंकि मध्यरात्रि ऐसा समय होता है जब अधिकतम अंधेरा होता है और भगवान के अवतरित होते ही अंधेरा छंटना शुरू हो गया।
उन्होंने कहा, इसी तरह से हमारा हृदय भी कई चिंताओं एवं कष्टों से पीड़ित होने के चलते अंधकार से भरा हुआ है।
यद्यपि हम अपने जीवन के प्रतिकूल समय में जब भगवान की शरण में जाते हैं और वह हमारे हृदय में प्रगट होते हैं, तो सभी अंधकार मिट जाता है और अनंत उम्मीद की धारा भीतर बहने लगती है।
इस दिन मथुरा नगरी पूरे धार्मिक रंग में रंगी होती है
बताया जाता है कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आधी रात में अत्याचारी मामा कंस के विनाश के लिए भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा में अवतार लिया था।
इसलिए इस दिन मथुरा में काफी हर्षोउल्लास से जन्माष्टमी मनाई जाती है। दूर-दूर से लोग इस दिन मथुरा आते हैं। इस दिन मथुरा नगरी पूरे धार्मिक रंग में रंगी होती है।
इस दिन भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है और झांकियां सजाई जाती हैं। इसके अलावा मंदिरों में रासलीला का आयोजन भी किया जाता है।
नीचे दिए गए वीडियो के मुताबिक 5 हजार 244 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण मध्य रात्रि में इस धरती पर अवतरित हुए थे।
जन्माष्टमी में पूजा का शुभ मुहूर्त (Krishna Janmashtami 2021)
दिन: सोमवार, भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि।
आज का दिशाशूल: पूर्व।
आज का राहुकाल: प्रात: 07:30 बजे से 09:00 बजे तक।
आज का पर्व एवं त्योहार: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती, श्री संत ज्ञानेश्वर जयंती।
विक्रम संवत 2078 शके 1943 दक्षिणायन, उत्तरगोल, वर्षा ऋतु भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी 26 घंटे तक, तत्पश्चात् नवमी कृतिका नक्षत्र 06 घंटे 39 मिनट तक, तत्पश्चात् रोहिणी नक्षत्र व्याघात योग 07 घंटे 46 मिनट तक, तत्पश्चात् हर्षण योग वृष में चंद्रमा।
जन्माष्टमी की पूजा विधि और नियम
जन्माष्टमी के दिन साधक को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
फलाहार किया जा सकता है। व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर को साफ सुथरा करें और जन्माष्टमी की तैयारी शुरू करें।
रोज की तरह पूजा करने के बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखे और इसे अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं।
दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें। मध्य रात्रि को एक बार फिर पूजा की तैयारी शुरू करें।
रात को 12 बजे भगवान के जन्म के बाद भगवान की पूजा करें और भजन करें।
गंगा जल से कृष्ण को स्नान करायें और उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाए और फिर भजन, गीत-संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।
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