छठ पूजा 2023(Chhath Puja 2023) – कब है छठ पूजा तिथि व पूजा मुहूर्त
छठ पूजा 2023 (chhath puja 2023) मुख्यतः पूर्वी भारत में मनाया जाने वाला प्रसिद्द पर्व है. बिहार में प्रचलित यह व्रत अब पूरे भारत सहित नेपाल में भी मनाया जाने लगा है.
इस पर्व को स्त्री व पुरुष समान रूप से मनाते हैं और छठ मैया से पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं.
कई लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर भी यह व्रत उठाते हैं और आजीवन या जब तक संभव हो सके यह व्रत करते हैं.
चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन त्योहार में छठी मइया की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. कई लोग इस पर्व को हठयोग भी कहते है.
छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है.
षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है.
इस पर्व को स्त्री व पुरुष समान रूप से मनाते हैं और छठ मैया से पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
कई लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर भी यह व्रत उठाते हैं और आजीवन या जब तक संभव हो सके यह व्रत करते हैं.
छठ पूजा पर्व तिथि व मुहूर्त 2023
- नहाय खाय की तिथि- 17 नवंबर, 2023, दिन- शुक्रवार
- सूर्योदय 06:45,
- सूर्यास्त शाम 05:27
- खरना की तिथि- 18 नवंबर, 2023, दिन- शनिवार
- सूर्योदय सुबह 06:46 बजे
- सूर्यास्त शाम 05:26 बजे
- संध्या अर्घ्य की तिथि- 19 नवंबर, 2023, दिन- रविवार
- सूर्यास्त शाम 05:26 बजे
छठ पूजा का महत्व
भारत के त्योहारों में छठ पूजा 2023 (chhath puja 2023) का बहुत ही बड़ा महत्व है. पुराने समय में राजा महाराज, पुरोहितों हो खासकर इस पूजा को राज्य में करने के लिए आमंत्रित करते थे.
सूर्य भगवान् की पूजा करने के लिए हवन कुंड के साथ-साथ वे ऋग्वेद के मन्त्रों का उच्चारण भी करते थे.
कहा जाता है छठ पूजा को हस्तिनापुर के द्रौपदी और पंच पांडव अपने दुखों के निवारण और अपने खोये हुए राज्य को दोबारा पाने के लिए किया करते थे. छठ पूजा को सबसे पहले शुरू सूर्य पुत्र कर्ण नें किया था.
उनके शौर्य और पराक्रम जितना कहा जाये कम है.
तथा ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बिमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है और परिवार के सदस्यों को लम्बी आयु प्रदान करती है.
आइये जानते है इस पर्व के हर दिन के महत्व के बारे में…
छठ पूजा की कथा
बहुत वर्ष पहले की बात है, एक राजा थे जिनका नाम था, प्रियव्रत और उनकी पत्नी का नाम था मालिनी.
वे बहुत ही ख़ुशी के साथ रहते थे पर उनके जीवन में एक बहुत बड़ा दुख का विषय था कि उनका कोई भी संतान नहीं था.
उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप की मदद से एक बहुत ही बड़ा यज्ञ करवाया. यज्ञ के वरदान के कारण रानी मालिनी गर्भवती तो हुई परन्तु नौवे महीने में उसने एक मृत शिशु को जन्म दिया.
राजा यह देख कर आपा खो बैठे और आत्महत्या करने की सोचने लगेउसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं.
राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो.’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत रत्न की प्राप्ति हुई. यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी. और छठ का चलन भी शुरू हो गया.
छठ पूजा के नियम
छठ पर्व में चार दिन शुद्ध कपड़े पहनने चाहिए. साथ ही इस पूजा में कपड़ों में सिलाई नहीं होनी चाहिए. इसलिए महिलाएं साड़ी व पुरुष धोती धारण करें.
त्योहार के पुरे चार दिन व्रत करने वाले को जमीन पर सोना चाहिए.
कम्बल या फिर चटाई का प्रयोग करना शुभ होता है. छठ पूजा नियम के अनुसार चार दिनों तक घर में प्याज और लहसुन वर्जित होना चाहिए.
सारे वर्ती आत्म सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का ही सेवन करें.
- छठ पूजा सामग्री छठ पूजा का प्रसाद रखने के लिए बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां
- बांस या फिर पीतल का सूप
- एक लोटा (दूध और जल अर्पण करने के लिए)
- एक थाली
- पान
- सुपारी
- चावल
- सिंदूर
- घी का दीपक
- शहद
- धूप या अगरबत्ती
- शकरकंदी
- सुथनी
- 5 पत्तियां लगे हुए गन्ने
- मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा
- बड़ा वाला नींबू
- फल जैसे नाशपाती, केला और शरीफा
- पानी वाला नारियल
- मिठाईयां
- गेहूं, चावल का आटा
- गुड़
- ठेकुआ
- खुद के लिए नए वस्त्र
छठ पूजा विधि के चार दिन
- चतुर्थी – नहाय खाय – इस दिवस पर पूरे घर की सफाई कर के उसे पवित्र बनाया जाता है. उसके बाद छठ व्रत स्नान करना होता है. फिर स्वच्छ वस्त्र धारण कर के शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत का शुभआरंभ करना होता है.
- पंचमी – लोखंडा और खरना – इन दिन व्रती दिन में एक बार खाना खाना होता है. इसके लिए कद्दू या सीताफल की सब्जी और पूरी व खीर ही खाई जाती है. इस अनुष्ठान को खरना भी कहा जाता है। खरना में जो प्रसाद तैयार किया जाता है उसके लिए नया चूल्हा या साफ सुथरी रसोई का ही इस्तेमाल किया जाता है. खरना का प्रसाद आस-पास लोगो को बुलाकर दिया जाता है.
- षष्ठी – संध्या अर्ध्य – इस दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और रात भर जागकर सूर्य देवता के जल्दी उदय होने की कामना करते हैं. व्रती को सूर्योदय तक पानी तक नहीं पीना होता. इसीलिए इस व्रत को काफी कठिन व्रत माना जाता है. इस दिवस पर रात्रि में नदी किनारे मेले जैसा मनोरम दृश्य सर्जित होता है.
- सप्तमी – परना दिन, उषा अर्ध्य – व्रत के आखिरी दिन को जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देने के बाद ही व्रती पारण करता है और प्रसाद ग्रहण करता है. इस अवसर पर छठी मइया यानी भगवान सूर्य से आशीर्वाद के लिए बहुत से लोग सपरिवार व्रत रखते हैं. सम्पूर्ण विधि स्वच्छता के साथ पूर्ण की जाती है.