कब से शुरू है शारदीय नवरात्रि, जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, घटस्थापना के दिन बन रहा है ये विशेष संयोग
कब से शुरू है शारदीय नवरात्रि, जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त, घटस्थापना के दिन बन रहा है ये विशेष संयोग
शारदीय नवरात्रि मां नवदुर्गा की उपासना का पर्व है. हर साल यह पावन पर्व श्राद्ध खत्म होते ही शुरु हो जाता है. इस साल शारदीय नवरात्रि का पर्व 26 सितम्बर से शुरू हो रहा है. इस बार के नवरात्रि खास माने जा रहे हैं, कारण है कि नवरात्रि में पांच रवियोग के साथ सौभाग्य योग और वैधृति योग बन रहा है.
महालया अमावस्या की खत्म होने के बाद शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. महालया के दिन मां दुर्गा से पृथ्वी पर आने की प्रार्थना की जाती है. इस वर्ष अधिक मास यानि मलमास के कारण ये एक माह बाद यानि 26 सितम्बर को आएगा.

क्या होता है अधिक मास
एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है. ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता हैं.
इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिक मास का नाम दिया गया है. अधिक मास को कुछ स्थानों पर मलमास भी कहते हैं.
- कब से शुरू होगी नवरात्रि
- घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
- घट स्थापना की विधि
- घट/कलश स्थापना हेतु सामग्री
- घट स्थापना (कलश स्थापना)विधि
- शारदीय नवरात्रि 2022 कैलेंडर
- नवरात्रिपर्व साल में कुल मिलाकर 4 बार आती है
- शारदीय नवरात्रि का महत्व
कब से शुरू होगी नवरात्रि
इस साल नवरात्रि पर्व 26 सितम्बर से प्रारंभ हो रहा है जो 14 अक्टूबर तक चलेगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र पर्व शुरू होता है जो नवमी तिथि तक चलते हैं। नवरात्रि के दौरान घटस्थापना किया जाता है. घट स्थापना, कलश स्थापना को कहते हैं. आइए जानते हैं घट स्थापना का शुभ मुहूर्त.

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रों का आरंभ 26 सितम्बर, आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगी. दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. घट स्थापना मुहूर्त का समय सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को सुबह 06:11:08 से 07:51:10 तक है.
घट स्थापना की विधि
नवरात्रि के प्रथम दिन ही घटस्थापना की जाती है. इसे कलश स्थापना भी कहा जाता है. इसके लिए कुछ सामग्रियों की आवश्यकता होती है.
घट/कलश स्थापना हेतु सामग्री
1. घट स्थापना के लिए कलश मिट्टी का होता है, आप सोना, चांदी या तांबा धातु से बना कलश भी उपयोग कर सकते हैं परंतु ध्यान रहे कलश स्टील, लोहा, एल्युमिनियम या अन्य किसी धातु का नहीं होना चाहिए.
2. कलश में भरने के लिए शुद्ध जल तथा गंगाजल.
3. जौ.
4. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र.
5. जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिट्टी.
6. आम के 5 पत्ते.
7. पानी वाला नारियल.
8. नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा.
9. फूल माला.
10. मोली.
11. इत्र.
12. साबुत सुपारी.
13. दूर्वा.
14. कलश में रखने के लिए द्रव्य / सिक्के.
15. कलश ढकने के लिए ढक्कन.
16. ढक्कन में रखने के लिए अक्षत.

घट स्थापना (कलश स्थापना) विधि
नवरात्रि में कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है. कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है.
- सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें. और उसमेजवारे के बीज डाल दें.
- अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें. और फिर बीज डालें. उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डालें.
- (ध्यान रहे इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं कि उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें. यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगाएं और ऊपर वाली लेयर में बीज अवश्य डालें).
- अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें. साथ ही तिलक भी लगाएं.
- इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें.
- इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें.
- अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें.
- अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें. चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें.
- इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें.
- तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें. उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें.
- आपकी कलश स्थापना संपूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें. इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा. बस ध्यान रखें सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें.
शारदीय नवरात्रि 2022 कैलेंडर
17 अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना
18 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
19 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा
20 अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा
21 अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा
22 अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
23 अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा
24 अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा
25 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा

नवरात्रि पर्व साल में कुल मिलाकर 4 बार आती है
हिन्दू धर्म में नवरात्रि का खास महत्व है. इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है. वेद-पुराणों में माँ दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार साल में चार बार नवरात्रि आती है. चैत्र और शारदीय के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी आती है.
चैत्र और शारदीय नवरात्रि में व्रत करने मां का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
शारदीय नवरात्रि का महत्व :- यदि हम नवरात्रि शब्द का संधि विच्छेद करें तो ज्ञात होता है कि यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ है नौ रातें. नवरात्रि पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है.
धर्मग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है. नवरात्र के इन पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती है. नवरात्रि का हर दिन देवी के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्वरुप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं.
नौ दिनों माता दुर्गा की आराधना के बाद दसवें दिन व्रत पारण किया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन को विजया दशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है. नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है.